Wednesday, June 12, 2019

मध्य पाषाण काल


मध्य पाषाण काल इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हें लघु पाषाणोपकरण माइक्रोलिथ कहते थे। पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ क्वार्टजाइट के स्थान पर मध्य पाषाण काल में जेस्पर, एगेट, चर्ट और चालसिडनी जैसे पदार्थ प्रयुक्त किये गये। इस समय के प्रस्तर उपकरण राजस्थान, मालवा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश एवं मैसूर में पाये गये हैं। अभी हाल में ही कुछ अवशेष मिर्जापुर के सिंगरौली, बांदा एवं विन्ध्य क्षेत्र से भी प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाणकालीन मानव अस्थि-पंजर के कुछ अवशेष प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के सराय नाहर राय तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाणकालीन जीवन भी शिकार पर अधिक निर्भर था। इस समय तक लोग पशुओं में गाय, बैल, भेड़, घोड़े एवं भैंसों का शिकार करने लगे थे। जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं।[1] यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है। कृषि संबंधी प्रथम साक्ष्य 'साम्भर' राजस्थान में पौधे बोने का है जो ईसा से सात हज़ार वर्ष पुराना है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता की एक झाँकी मिलती है। मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में कुछ साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है कि लोग कृषि एवं पशुपालन की ओर आकर्षित हो रहे थे इस समय मिली समाधियों से स्पष्ट होता है कि लोग अन्त्येष्टि क्रिया से परिचित थे। मानव अस्थिपंजर के साथ कहीं-कहीं पर कुत्ते के अस्थिपंजर भी मिले है जिनसे प्रतीत होता है कि ये लोग मनुष्य के प्राचीन काल से ही सहचर थे। बागोर और आदमगढ़ में छठी शताब्दी ई.पू. के आस-पास मध्य पाषाण युगीन लोगों द्वारा भेड़े, बकरियाँ रख जाने का साक्ष्य मिलता है। मध्य पाषाण युगीन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं - मध्य पाषाण युगीन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण स्थल स्थल क्षेत्र 1- बागोर राजस्थान 2- लंघनाज गुजरात 3- सराय नाहरराय, चोपनी माण्डो, महगड़ा व दमदमा उत्तर प्रदेश 4- भीमबेटका, आदमगढ़ मध्य प्रदेश नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल मुख्य लेख : नव पाषाण काल साधरणतया इस काल की सीमा 3500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच मानी जाती है। यूनानी भाषा का Neo शब्द नवीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसलिए इस काल को ‘नवपाषाण काल‘ भी कहा जाता है। इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। सर्वप्रथम 1860 ई. में 'ली मेसुरियर' Le Mesurier ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टौंस नदी की घाटी से प्राप्त किया। इसके बाद 1872 ई. में 'निबलियन फ़्रेज़र' ने कर्नाटक के 'बेलारी' क्षेत्र को दक्षिण भारत के उत्तर-पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया। इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के मुख्य केन्द्र बिन्दु हैं - कश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।



पाषाण

भारत का इतिहास पाषाण काल  

समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-

  1. प्राक्इतिहास या प्रागैतिहासिक काल Prehistoric Age 
  2. आद्य ऐतिहासिक काल Proto-historic Age 
  3. ऐतिहासिक काल Historic Age 


●प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल मुख्य लेख : प्रागैतिहासिक काल इस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं रखा। इस काल में विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण के उपकरणों, मिट्टी के बर्तनों, खिलौने आदि से प्राप्त होती है। 
●आद्य ऐतिहासिक काल इस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं।
ऐतिहासिक काल मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसके लिए लिखित विवरण उपलब्ध है। मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है, पर ‘ज्ञानी मानव‘ होमो सैपियंस Homo sapiens का प्रवेश इस धरती पर आज से क़रीब तीस या चालीस हज़ार वर्ष पहले ही हुआ। पाषाण काल यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारम्भिक काल माना जाता है। 

इस काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। - पुरा पाषाण काल Paleolithic Age मध्य पाषाण काल Mesolithic Age एवं नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल Neolithic Age पुरापाषाण काल यूनानी भाषा में Palaios प्राचीन एवं Lithos पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था। इन्हीं शब्दों के आधार पर Paleolithic Age (पाषाणकाल) शब्द बना । यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है। अभी तक भारत में पुरा पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाये हैं, जो कुछ भी अवशेष के रूप में मिला है, वह है उस समय प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर के उपकरण। प्राप्त उपकरणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ये लगभग 2,50,000 ई.पू. के होंगे। अभी हाल में महाराष्ट्र के 'बोरी' नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर 'मनुष्य' की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पुरानी है। गोल पत्थरों से बनाये गये प्रस्तर उपकरण मुख्य रूप से सोहन नदी घाटी में मिलते हैं। सामान्य पत्थरों के कोर तथा फ़्लॅक्स प्रणाली द्वारा बनाये गये औजार मुख्य रूप से मद्रास, वर्तमान चेन्नई में पाये गये हैं। इन दोनों प्रणालियों से निर्मित प्रस्तर के औजार सिंगरौली घाटी, मिर्ज़ापुर एंवं बेलन घाटी, इलाहाबाद में मिले हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल नगर के पास भीम बेटका में मिली पर्वत गुफायें एवं शैलाश्रृय भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस समय के मनुष्यों का जीवन पूर्णरूप से शिकार पर निर्भर था। वे अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे। सम्भवतः इस समय के मनुष्य नीग्रेटो Negreto जाति के थे।

 भारत में पुरापाषाण युग को औजार-प्रौद्योगिकी के आधार पर तीन अवस्थाओं में बांटा जा एकता हैं। यह अवस्थाएं हैं- पुरापाषाण कालीन संस्कृतियां काल अवस्थाएं 1- निम्न पुरापाषाण काल हस्तकुठार Hand-axe और विदारणी Cleaver उद्योग 2- मध्य पुरापाषाण काल शल्क (फ़्लॅक्स) से बने औज़ार 3- उच्च पुरापाषाण काल शल्कों और फ़लकों (ब्लेड) पर बने औजार पूर्व पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं - पूर्व पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल स्थल क्षेत्र 1- पहलगाम कश्मीर 2- वेनलघाटी इलाहाबाद ज़िले में, उत्तर प्रदेश 3- भीमबेटका और आदमगढ़ होशंगाबाद ज़िले में मध्य प्रदेश 4- 16 आर और सिंगी तालाब नागौर ज़िले में, राजस्थान 5- नेवासा अहमदनगर ज़िले में महाराष्ट्र 6- हुंसगी गुलबर्गा ज़िले में कर्नाटक 7- अट्टिरामपक्कम तमिलनाडु मध्य पुरापाषाण युग के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं - भीमबेटका नेवासा पुष्कर ऊपरी सिंध की रोहिरी पहाड़ियाँ नर्मदा के किनारे स्थित समानापुर पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले प्रस्तर उपकरणों के आकार एवं जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इस काल को हम तीन वर्गो में विभाजित कर सकते हैं।- 
निम्न पुरा पाषाण काल (2,50,000-1,00,000 ई.पू.) 
मध्य पाषाण काल (1,00,000- 40,000 ई.पू.) 
उच्च पुरापाषाण काल (40,000- 10,000 ई.पू.)

मेहरगढ़


मेहरगढ़

उस स्थान पर स्थित है, जहाँ सिंधु नदी के कछारी मैदान और वर्तमान पाकिस्तान और ईरान के सीमांत प्रदेश के पठार मिलते हैं। इस प्रकार मेहरगढ़ पाक़िस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 'बोलन दर्रे' के निकट स्थित है। यहाँ से कृषक समुदाय के उद्भव के भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे प्राचीन प्रमाण प्राप्त हुए हैं। यह स्थान अस्थायी मानव आवास के रूप प्रयुक्त हुआ था तथा सम्भवत: सातवीं सहस्त्राब्दी ई.पू. में यहाँ एक मानव बस्ती अस्तित्व में आ गयी थी।



Tuesday, June 11, 2019

भारत का इतिहास

भारत का इतिहास
 पाषाण युग-70000 से 3300 ई.पू
 मेहरगढ़ संस्कृति7000-3300 ई.पू
सिन्धु घाटी सभ्यता-3300-1700 ई.पू
हङप्पा संस्कृति1700-1300 ई.पू
वैदिक काल-1500–500 ई.पू
प्राचीन भारत- 1200 ई.पू–240 ई.
महाज़नपद700–300 ई.पू
मगध साम्राज्य545–320 ई.पू
सातवाहन साम्राज्य230 ई.पू-199 ई.
मौर्य साम्राज्य321–184 ई.पू
शुंग साम्राज्य 184–123 ई.पू
शक साम्राज्य 123 ई.पू–200 ई.
कुषाण साम्राज्य 60–240 ई.
पूर्व मध्यकालीन भारत- 240 ई.पू– 800 ई.
चोल साम्राज्य 250 ई.पू- 1070 ई.
गुप्त साम्राज्य 280–550 ई.
पाल साम्राज्य 750–1174 ई.
प्रतिहार साम्राज्य 830–963 ई.
राजपूत काल900–1162 ई.
मध्यकालीन भारत- 500 ई.– 1761 ई.
दिल्ली सल्त्नत 
गुलाम वंश
खिल्ज़ी वंश 
तुगलक वंश
सैय्यद वंश
लोदी वंश
मुगल साम्राज्य 
1206–1526 ई.
1206-1290 ई.
1290-1320 ई.
1320-1414 ई.
1414-1451 ई.
1451-1526 ई.
1526–1857 ई.
दक्कन सल्तनत 
बहमनी वंश
निजामशाही वंश
1490–1596 ई.
1358-1518 ई.
1490-1565 ई.
दक्क्षिणी साम्राज्य 
राष्ट्रकुट साम्राज्य 
होइसल साम्राज्य 
ककातिया साम्राज्य 
विजयनगर साम्राज्य 
1040-1565 ई.
736-973 ई.
1040–1346 ई.
1083-1323 ई.
1326-1565 ई.
आधुनिक भारत-1762–1947 ई.
मराठा साम्राज्य 1674-1818 ई.
सिख राज्यसंघ1716-1849 ई.
औपनिवैश काल1760-1947 ई.
भारत  में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं। 1) इसके पश्चात् एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। हड़प्पा की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कति ओर राजस्थान तथा पंजाब की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।2) यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है।
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
भारतीय इतिहास जानने के स्रोत को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैं-
साहित्यिक साक्ष्य
विदेशी यात्रियों का विवरण
पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य
साहित्यिक साक्ष्य
साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। साहित्यिक साक्ष्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य।
धार्मिक साहित्य
धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर साहित्य की चर्चा की जाती है।
ब्राह्मण ग्रन्थों में-
वैद,उपनिषद,रामायण,महाभारत, पुराण, स्मृति ग्रंथ आते हैं।
ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थों में जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों को सम्मिलित किया जाता है।
लौकिक साहित्य
लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक ग्रन्थ, जीवनी, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है।
धर्म-ग्रन्थ
प्राचीन काल से ही भारत के धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां प्रायः तीन धार्मिक धारायें- वैदिक, जैन एवं बौद्ध प्रवाहित हुईं। वैदिक धर्म ग्रन्थ को ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है।
ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ
ब्राह्मण धर्म - ग्रंथ के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्, महाकाव्य तथा स्मृति ग्रंथों को शामिल किया जाता है।
वेद
मुख्य लेख : वैद
वेद एक महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ है। वेद शब्द का अर्थ ‘ज्ञान‘ महतज्ञान अर्थात् ‘पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान‘ है। यह शब्द संस्कृत ‘विद्‘ धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना। वेदों के संकलनकर्ता 'कृष्ण द्वैपायन' थे। कृष्ण द्वैपायन को वेदों के पृथक्करण-व्यास के कारण 'वेदव्यास' की संज्ञा प्राप्त हुई। वेदों से ही हमें आर्यो के विषय में प्रारम्भिक जानकारी मिलती है। कुछ लोग वेदों को अपौरुषेय अर्थात् दैवकृत मानते हैं। वेदों की कुल संख्या चार है-
ऋग्वैद-यह ऋचाओं का संग्रह है।
सामवेद- यह ऋचाओं का संग्रह है।
यजुर्वेद- इसमें यागानुष्ठान के लिए विनियोग वाक्यों का समावेश है।
अथर्ववेद- यह तंत्र-मंत्रों का संग्रह है।
ब्राह्मण ग्रंथ
मुख्य लेख : ब्राह्मण साहित्य 
यज्ञों  एवं कर्मकाण्डों के विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली-भांति समझने के लिए ही इस ब्राह्मण ग्रंथ की रचना हुई। यहां पर 'ब्रह्म' का शाब्दिक अर्थ हैं- यज्ञ अर्थात् यज्ञ के विषयों का अच्छी तरह से प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ही 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहे गये। ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वथा यज्ञों की वैज्ञानिक, अधिभौतिक तथा अध्यात्मिक मीमांसा प्रस्तुत की गयी है। यह ग्रंथ अधिकतर गद्य में लिखे हुए हैं। इनमें उत्तरकालीन समाज तथा संस्कृति के सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त होता है। प्रत्येक वेद (संहिता) के अपने-अपने ब्राह्मण होते हैं।
आरण्यक
मुख्य लेख : आरण्यक साहित्य
आरयण्कों में दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों यथा, आत्मा, मृत्यु, जीवन आदि का वर्णन होता है। इन ग्रंथों को आरयण्क इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन ग्रंथों का मनन अरण्य अर्थात् वन में किया जाता था। ये ग्रन्थ अरण्यों (जंगलों) में निवास करने वाले सन्न्यासियों के मार्गदर्शन के लिए लिखे गए थै। आरण्यकों में ऐतरेय आरण्यक, शांखायन्त आरण्यक, बृहदारण्यक, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक तथा तवलकार आरण्यक (इसे जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण भी कहते हैं) मुख्य हैं। ऐतरेय तथा शांखायन ऋग्वेद से, बृहदारण्यक शुक्ल यजुर्वेद से, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक कृष्ण यजुर्वेद से तथा तवलकार आरण्यक सामवेद से सम्बद्ध हैं। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है। आरण्यक ग्रन्थों में प्राण विद्या की महिमा का प्रतिपादन विशेष रूप से मिलता है। इनमें कुछ ऐतिहासिक तथ्य भी हैं, जैसे- तैत्तिरीय आरण्यक में कुरू, पांचाल, काशी, विदेह आदि महाजन पदों  का उल्लेख है।
उपनिषद
मुख्य लेख : उपनिषद 
उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि। लेकिन शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर स्पना भाष्य लिखा है, उनको प्रमाणिक माना गया है। ये हैं - ईश, केन, माण्डूक्य, मुण्डक, तैत्तिरीय, ऐतरेय, प्रश्न, छान्दोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद। इसके अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौषीतकि उपनिषद भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस प्रकार 103 उपनिषदों में से केवल 13 उपनिषदों को ही प्रामाणिक माना गया है। भारत का प्रसिद्ध आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डोपनिषद से लिया गया है। उपनिषद गद्य और पद्य दोनों में हैं, जिसमें प्रश्न , मान्डुक , केंन, तैत्रीय ,ऐतेरय ,छान्दोग्य  , बृहदारण्यक और कौषीतकि ,उपनिषद गद्य में हैं तथा केन , ईस , कठ  और स्वेतास्तर उपनिषद गद्य में हैं।
वेदांग
मुख्य लेख : वेदांग
वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफ़ी सहायक होते हैं। वेदांग शब्द से अभिप्राय है- 'जिसके द्वारा किसी वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिले'। वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है-
1- शिक्षा, 2- कल्प, 3- व्याकरण, 4- निरूक्त, 5- छन्द एवं 6- ज्योतिष
ब्राह्मण ग्रन्थों में धर्मशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
धर्मशास्त्र में चार साहित्य आते हैं- 1- धर्म सूत्र, 2- स्मृति, 3- टीका एवं 4- निबन्ध।
स्मृतियाँ
मुख्य लेख : स्मृतियां
स्मृतियों को 'धर्म शास्त्र' भी कहा जाता है- 'श्रस्तु वेद विज्ञेयों धर्मशास्त्रं तु वैस्मृतिः।' स्मृतियों का उदय सूत्रों को बाद हुआ। मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बंधित अनेक क्रिया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों से मिलती है। सम्भवतः मनुस्मृति (लगभग 200 ई.पूर्व. से 100 ई. मध्य) एवं याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन हैं। उस समय के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मृतिकार थे- नारद, परासर, बृहस्पति, कात्यायन, गौतम, संवर्त, हरीत, अंगिरा  आदि, जिनका समय सम्भवतः 100 ई. से लेकर 600 ई. तक था। मनुस्मृति से उस समय के भारत के बारे में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी मिलती है। नारद स्मृति से गुप्त वंश के संदर्भ में जानकारी मिलती है। मेधातिथि, मारुचि, कुल्लूक भट्ट, गोविन्दराज आदि टीकाकारों ने 'मनुस्मृति' पर, जबकि विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञनेश्ववर आदि ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' पर भाष्य लिखे हैं।
महाकाव्य
मुख्य लेख : महाकाव्य
'रामायण' एवं 'महाभारत', भारत के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य हैं। यद्यपि इन दोनों महाकाव्यों के रचनाकाल के विषय में काफ़ी विवाद है, फिर भी कुछ उपलब्ध साक्ष्यों के आधर पर इन महाकाव्यों का रचनाकाल चौथी शती ई.पू. से चौथी शती ई. के मध्य माना गया है।
रामायण
मुख्य लेख : रामायण
रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि द्वारा पहली एवं दूसरी शताब्दी के दौरान संस्कृत भाषा में की गयी । बाल्मीकि कृत रामायण में मूलतः 6000 श्लोक थे, जो कालान्तर में 12000 हुए और फिर 24000 हो गये । इसे 'चतुर्विशिति साहस्त्री संहिता' भ्री कहा गया है। बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण- बाल्कान्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकांड, सुन्दरकाण्ड,युध्दकाण्ड एवं उत्तरकांड  नामक सात काण्डों में बंटा हुआ है। रामायण द्वारा उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। रामकथा पर आधारित ग्रंथों का अनुवाद सर्वप्रथम भारत से बाहर चीन में किया गया। भूशुण्डि रामायण को 'आदिरामायण' कहा जाता है।
महाभारत
मुख्य लेख : महाभारत
 महर्षि व्याष द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य रामायण से बृहद है। इसकी रचना का मूल समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी माना जाता है। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात् यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में गुप्त काल में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग , भीष्म, द्रौण , कर्ण, शल्य, सोप्तिक, स्त्री, शान्ति, अनुशासन, अस्वमेध, आश्रमवाशी, मोवशल, महाप्रस्थानीक एवं स्वर्गारोहण में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
पुराण
मुख्य लेख : पुराण
प्राचीन आख्यानों से युक्त ग्रंथ को पुराण कहते हैं। सम्भवतः 5वीं से 4थी शताब्दी ई.पू. तक पुराण अस्तित्व में आ चुके थे।ब्रह्म वैवर्त पुराण में पुराणों के पांच लक्षण बताये ये हैं। यह हैं- सर्प, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। कुल पुराणों की संख्या 18 हैं- 1.  ब्रह्म पुराण 2.पद्ध्म पुराण 3. विष्णु पुराण 4. वायू पुराण 5.भागवद्  पुराण 6. नारदीय पुराण, 7. मारकेण्डय पुराण8. अग्नि पुराण 9. भविष्य पुराण10. ब्रह्म वैवर्त पुराण, 11. लिंग पुराण 12. वराह पुराण 13. स्कन्द पुराण 14.वामन पुराण15. कूर्म पुराण 16. मत्स्य पुराण 17. गरूङ पुराण और 18. ब्राहम्णपुराण
बौद्ध साहित्य
मुख्य लेख : बौद्ध साहित्य
बौद्ध साहित्य को ‘त्रिपीटक' कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के उपरान्त आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित किये गये त्रिपिटक (संस्कृत त्रिपिटक) सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वुलर एवं रीज डेविड्ज महोदय ने ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ टोकरी बताया है। त्रिपिटक हैं-
सुत्त्पीटक , विनयपिटक, अभिध्मपीटक 
इन्हें भी देखेंजैन साहित्य एवं लौकिक  साहित्य
जैन साहित्य
मुख्य लेख : जैन साहित्य
ऐतिहसिक जानकारी हेतु जैन साहित्य भी बौद्ध साहित्य की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक उपलब्ध जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में मिलतें है। जैन साहित्य, जिसे आगम कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है। आगे चलकर इनके 'उपांग' भी लिखे गये । आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं। इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेतांबर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी।
विदेशियों के विवरण
विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी हमें भारतीय इतिहास की जानकारियाँ मिलती है। इनको तीन भागों में बांट सकते हैं-
यूनानी-रोमन लेखक
चीनी लेखक
अरबी लेखक
पुरातत्त्व
मुख्य लेख : पुरातत्व
पुरातात्विक साक्ष्य के अंतर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियां चित्रकला आदि आते हैं। इतिहास निमार्ण में सहायक पुरातत्त्व सामग्री में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये अभिलेख अधिकांशतः स्तम्भों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं पात्रों, मूर्तियों, गुहाओं आदि में खुदे हुए मिलते हैं। यद्यपि प्राचीनतम अभिलेख मध्य एशिया के 'बोगज़्कोई' नाम स्थान से क़रीब 1400 ई.पू. में पाये गये जिनमें अनेक वैदिक देवताओं - इन्द्र , मित्र, वरुण, नासत्य आदि का उल्लेख मिलता है।
चित्रकला
मुख्य लेख : चित्रकला
चित्रकला से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। अजन्ता के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रों में ‘माता और शिशु‘ या ‘मरणशील राजकुमारी‘ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक पराकाष्ठा का पूर्ण प्रमाण मिलता है।